जब एक दिन का व्रत
किसी की साँसों को बढ़ा सकता है,
तो सोचो—
यदि पूरा जीवन ही व्रत हो जाए,
तो क्या कुछ नहीं बदल सकता?
हर सुबह एक संकल्प,
हर साँझ एक समर्पण।
हर कर्म,
एक यज्ञ की आहुति।
हर मौन,
एक मंत्र की गूंज।
जीवन तब
केवल जीना नहीं होता—
वह जीने की वजह बनता है।
वह दूसरों की थकान में विश्राम बनता है,
किसी की पीड़ा में प्रार्थना।
व्रत जब देह से निकलकर
आत्मा में उतरता है,
तो समय रुकता नहीं—
वह झुकता है।
और तब
एक साधारण मनुष्य
एक असाधारण ऊर्जा बन जाता है।

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