जीवन—
जैसे कोई नदी,
हर मोड़ पर नया दृश्य रचती,
हर लहर में एक प्रश्न छोड़ती।
मृत्यु—
जैसे धूप का झुकना,
धीरे-धीरे रंगों को समेटती,
और मौन में विलीन हो जाती।
गुण—
वह जो हवा की तरह बहता है,
जो समय के सुर में गाता है,
जो परिवर्तन को पूजा मानता है।
अवगुण—
वह जो पत्थर बन बैठा है,
जो प्रवाह से लड़ता है,
और अंततः खुद को ही तोड़ता है।
आनंद आता है
जब हम बहते हैं,
जब हम मिटते हैं,
जब हम फिर से जन्म लेते हैं
हर पल में।
दुख आता है
जब हम रुकते हैं,
जब हम थामते हैं
उसको जो थमने के लिए बना ही नहीं।
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